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ध्यान और सुरति की शक्ति: आत्मा की जागृति का रहस्य

By Gurmukh Bhoma

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ध्यान और सुरति की शक्ति
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आत्मा की यात्रा और उसका बंधन

मनुष्य इस संसार में जन्म लेता है, जीवन जीता है और एक दिन मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। परंतु आत्मा का यह यात्रा इतनी साधारण नहीं है। आत्मा का मूल स्थान ‘काल की दुनिया’ नहीं, बल्कि ‘उसका सच्चा घर’ है, जहां से वह आई है। इस संसार में वह बंधन में है — मन, माया और इच्छाओं के। इसे मुक्त करने के लिए हमें ध्यान और सुरति की शक्ति को जानना होगा।

ध्यान: एक वैज्ञानिक और आध्यात्मिक साधना

ध्यान और सुरति की शक्ति केवल एक धार्मिक प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह एक वैज्ञानिक यथार्थ है। जिस वस्तु पर हम ध्यान केंद्रित करते हैं, उसकी ऊर्जा, गुण और प्रभाव हमारे भीतर समाहित हो जाते हैं। यदि हम किसी महापुरुष का ध्यान करते हैं, तो ध्यान और सुरति की शक्ति हमारे अंदर प्रवेश करती हैं। विशेष रूप से, जब हम सद्गुरु का ध्यान करते हैं, तो हमारे मन की अशांति समाप्त होने लगती है और आत्मा जाग्रत होने लगती है।

ध्यान और सुरति की शक्ति

परमात्मा का ध्यान क्यों नहीं, गुरु का ध्यान क्यों?

कई लोग सीधे परमात्मा का ध्यान करने की बात करते हैं, लेकिन शास्त्र और संत महापुरुष कहते हैं कि परमात्मा निराकार, शब्दातीत और कल्पनातीत है। उसे जाना नहीं जा सकता, इसलिए उसका ध्यान कर पाना भी संभव नहीं है। इसके विपरीत, सद्गुरु हमारे सम्मुख होते हैं — एक जीवित उदाहरण। इसलिए श्रीमद्भगवद्गीता में भी भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा:

“जो पितरों की भक्ति करता है, वह पितरलोक को प्राप्त होता है,
जो देवताओं की भक्ति करता है, वह देवलोक को।
लेकिन जो मेरी भक्ति करता है, वह मुझमें लीन हो जाता है।”

यहाँ “मैं” का अर्थ है – गुरु रूपी ब्रह्म

सद्गुरु का ध्यान: आत्मा को रूपांतरित करने वाली शक्ति

सद्गुरु केवल एक अध्यापक नहीं, बल्कि वे चेतना के जाग्रत स्त्रोत होते हैं। उनके  ध्यान और सुरति की शक्ति मिलती है। वे अपनी सुरति शक्ति से शिष्य की आत्मा को परमात्मा से जोड़ देते हैं। जब नामदान दिया जाता है, उस क्षण सद्गुरु अपनी सुरति से शिष्य के भीतर परमशक्ति की रश्मियाँ छोड़ते हैं, जो शिष्य की आत्मा को सचेत कर देती हैं।

ध्यान और सुरति की शक्ति

सुरति: आत्मा की चेतना का द्वार

सुरति का अर्थ है – चेतना।  ध्यान और सुरति की शक्ति जिससे हम सोचते, अनुभव करते और संसार को समझते हैं। हमारे भीतर सुरति के सात स्तर होते हैं:

  1. प्रथम अमी सुरति – आनन्द का अनुभव कराती है।
  2. मूल सुरति – शरीर को चेतना देती है।
  3. चमक सुरति – ध्यान और एकाग्रता की शक्ति।
  4. शून्य सुरति – शांत और संतोषजनक अनुभव।
  5. ज्ञान सुरति – विवेक और निर्णय की शक्ति।
  6. अनुभव मुरति – इन्द्रियों की जागरूकता।
  7. हृदय सुरति – पूरे शरीर में ऊर्जा का संचार करती है।

इन सुरतियों के माध्यम से आत्मा शरीर में कार्यरत होती है, लेकिन जब यह मन में उलझ जाती है, तब वह अपने मूल स्वरूप को भूल जाती है।

मन का धोखा: आत्मा को बाँधने वाली शक्ति

मन ही वह तत्व है जो आत्मा को भ्रमित करता है। यह इच्छा करता है, भटकाता है और सुरति को अपने वश में कर लेता है। कबीर साहिब ने कहा:

“मन ही निरंजन सबै नचाई,
जीव के संग मन काल रहाई।”

मन आत्मा को अपनी वासना में फंसा देता है, जिससे आत्मा का ध्यान बाहर की ओर बहता है। इससे बचने के लिए सद्गुरु का मार्गदर्शन आवश्यक है।

ध्यान और सुरति की शक्ति

स्वाँस और सुरति का योग: साधना का मूल

ध्यान और सुरति की शक्ति सबसे गूढ़ और प्रभावी विधि है – स्वाँस और सुरति का योग। यह क्रिया तब होती है जब हम अपनी श्वास की गति को सुरति के साथ जोड़ते हैं। उदाहरण के लिए, वाल्मीकि जी ने ‘राम’ शब्द को उल्टा जपते हुए ‘मरा मरा’ जप किया, जिससे उनकी सुरति जागरूक हुई और वे ब्रह्मज्ञानी बने।

कबीर साहिब ने भी कहा:

“सकल पसारा मेटिकर, मन पवना कर एक।
ऊँची तानों सुरति को, तहाँ देखो पुरुष अलेख।।”

जब सभी प्राणवायु एकत्र होकर सुषुम्ना में प्रवेश करती हैं, तो साधक आत्मिक चेतना का अनुभव करता है।

साधक की यात्रा: चेतना का संकेंद्रण

एक साधक जब सुरति को संसार से हटाकर गुरु शब्द में एकाग्र करता है, तब वह धीरे-धीरे आत्मिक चेतना के उच्च स्तर पर पहुँचता है। साधक को अनुभव होने लगता है कि उसकी चेतना शरीर तक सीमित नहीं है। यह यात्रा कठिन अवश्य है, परंतु सद्गुरु की कृपा से यह सहज हो जाती है।

निष्कर्ष: सुरति और ध्यान ही मुक्ति का साधन है

इस संसार से मुक्ति और आत्मा की जागृति का एकमात्र मार्ग है – सुरति को जागृत करना और ध्यान को गुरु शब्द में लगाना। सद्गुरु ही वह मार्गदर्शक हैं जो इस कठिन राह को सरल बना सकते हैं। यदि हम स्वाँस और सुरति को जोड़कर ध्यान करें, तो आत्मा अपने मूल स्थान की ओर लौट सकती है।

जैसे कबीर साहिब ने कहा:

“जाकी सुरति लाग रही जहवाँ,
कहे कबीर पहुँचाऊँ तहवाँ।”

अतः, यदि ध्यान को स्थिर कर सुरति को जागृत किया जाए, तो जीवन में शांति, आनंद और मुक्ति का अनुभव अवश्य होगा।

क्या आप भी  ध्यान और सुरति की शक्ति को जागृत करना चाहते हैं?

अब समय आ गया है कि आप अपने भीतर की शक्ति को पहचानें और गुरु शब्द के ध्यान से आत्मिक यात्रा शुरू करें।
आज ही ध्यान साधना को अपनी दिनचर्या में शामिल करें और देखें कैसे आपके जीवन में शांति, संतुलन और आनंद का संचार होता है।

सद्गुरु की शरण में जाकर सुरति को जाग्रत करें — और आत्मा को उसके मूल घर की ओर लौटने का मार्ग दिखाएं।

आपका पहला कदम क्या होगा? नीचे कमेंट करके हमें जरूर बताएं!
और यदि यह लेख उपयोगी लगा हो, तो इसे शेयर करें ताकि और लोग भी इस ज्ञान का लाभ ले सकें।

Gurmukh Bhoma

Gurmukh is the creator of SpiritualTru.com, a platform dedicated to exploring spirituality, mindfulness, and inner peace. With a deep passion for spiritual wisdom, Gurmukh shares insightful articles, thought-provoking discussions, and practical guidance to help readers on their journey toward enlightenment and self-discovery.

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